Karma
हमारे कर्म ही हमे लौट के आते है चाहे फिर वो नफ़रत हो या फिर प्यार ।।
इंसानों की पहचान उसके करमों से होती है। वैसे पुतले भी बाज़ार में सजधज के खड़े होते है।।
बिन इच्छा कर्म करेगा फल तेरी इच्छा का मिलेगा, जो तूने इच्छा की तो फिर फल मिलेगा मेरी इच्छा का।।
इंसानियत दिल में होती है हैसियत में नहीं, उपरवाला कर्म देखता है वसीयत नहीं।।
हम अपने ही करमों का दुख भोगते है ईश्वर का कोई दोष नहीं, जैसा कर्मा वेसी ही नियति होगी।।
जैसा करोगे वैसा फल मिलेगा।।
मत कर रिश्तों में तु सौदा जब , कर्मा आयेंगे सूत तक वसूलेंगे।।
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